Wednesday, December 1, 2010
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जिस तरह नदियाँ अलग अलग दिशाओं से आकर सागर में मिलती है और वहां विश्राम करती है... उसी तरह हम भी बहती हुई नदिया के समान है जो दोस्ती नाम के सागर में आकर मिलते है और वही विश्राम करते है... सभी के अपने अपने अलग मायने हो सकते है दोस्ती के, मगर हमारा मानना है की ये वो सागर है जहाँ आने पर सब कुछ “एक" हो जाता है, ना कोई छोटा ना बडा, ना अच्छा ना बुरा, सब एक समान, सब साझा… दोस्ती वो सागर है इस का पानी हमेशा मीठा होता है, खारेपन का कहीं कोई नामोनिशान नहीं… हम तो इस सागर में डूब चुके है… और आप !!!